हिंद के माथे पर हिंदी
बिंदी सा चमके है,
आज विश्व के हर कोने में
तू मोतियों सा दमके है।
बग़ैर तेरे क्या करूँ कल्पना,
होती न तू तो क्या कोई
सृजन कर पाता रचना।
लिपियों में है तू प्राचीन,
हर एक वर्ण लागे नवीन।
स्वर व्यंजन का तू बड़ा खजाना,
तेरे बग़ैर क्या संभव है
सूर कबीर तुलसी की
कल्पना कर पाना?
डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन' - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)