मातृभूमि और मातृभाषा - कविता - गोकुल कोठारी

सुदूर कहीं किसी देश में,
जब कोई मिलता, निज भाषा, निज वेश में,
मन में वात्सल्य भाव से, उदगम एक सोता होगा,
आँखें भर आएँगी, क्यों मनुज मातृभूमि को खोता होगा,
यही शब्दों की सहज शक्ति है,
मातृभूमि के लिए भक्ति है,
मातृभूमि की कोख से, पुष्प पल्लवित है निजभाषा,
जननी बनकर देशप्रेम की अलख जगाती है निजभाषा।

गोकुल कोठारी - पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos