एक घनी विकसित सभ्यता - कविता - इमरान खान

एक घनी विकसित सभ्यता थी।
जिसका अंत हो गया 
दुनिया के नक़्शे से।
जिसके जीवाश्म अभी भी उपलब्ध है 
इतिहास की पुस्तकों में।
मैं उसी सभ्यता के मुहाने पर खड़ा होकर 
लिख रहा हूँ ये कविता।
जिसे आने वाले वक्त में,
अति आधुनिक तरीक़े से और भी विकसित होना है।
मैं बोल रहा हूँ वहाँ से,
जहाँ से,
बहता है सिंधु घाटी सभ्यता का पानी।

मैं बात कर रहा हूँ
उस हर एक सभ्यता की,
जिसका अंत हुआ है
दुनिया के नक़्शे पर।
मैं बात कर रहा हूँ
सभ्यता की छाती पर बचे हुए आख़िरी अवशेषो से,
कांस्य धातु से बनी 
नृत्य करती हुई आख़िरी लड़की से,
चित्रित मृतभांडो से,
लाल बलुआ पत्थर से बने पुरुष के आख़िरी धड़ से,
हड़प्पाई लिपि से,
जिसे पढ़ा जाना अभी बाक़ी है।

इतिहास में पहली लिपि पढ़ने का श्रेय किसे गया होगा?
इतिहास इसपर मौन है।
कहाँ ढूँढ़ूँ उसे?
पाणिनी के दस्तावेजों में, 
या अरस्तू की बिखरी हुई हड्डियों में?
जिसे सुरक्षित रखा जाना था,
वो बिखरी हुई हड्डियाँ लिपियों का दस्तावेज़ था।
जिसे पढ़ा जाना अभी बाक़ी था।

किसी सभ्यता का अंत जीवन का अंत नहीं होता।
आने वाली पीढ़ी को बताएँगे,
एक सभ्यता जो नष्ट हो सकती है
उसे कैसे बचाया जा सकता है।

इमरान खान - नत्थू पूरा (दिल्ली)

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