हिन्दी दिवस - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा'

हिन्दी बन जन मानस की अति प्रिय भाषा।
तार दिलों के जोड़ने की जगाती है सबमें आशा।
सभ्यता-संस्कृति की जो बताती है सबको परिभाषा।
निराली लिपि भी इसकी बनाती इसकी सरल भाषा।
जैसे बोले वैसे ही लिखती जाए यह भाषा।
प्राचीन भाषा पाली का ही विकसित रूप ये भाषा।
महाकवि केशव, भूषण, बिहारी के मन की भाषा।
पंत, निराला, प्रसाद के महाकाव्य की भाषा।
बड़े-बड़े धर्म ग्रंथ को अपने में समाए है यह भाषा।
सद साहित्य का भर भंडार ज्ञान बढ़ाती जाए यह भाषा।
सुरीले साज को संजों महफ़िल को सजाती यह भाषा।
विश्व बंधुत्व के भाव को सबमें जगाने की आशा।
पूरी हो भारत को विश्व विख्यात करने की अभिलाषा।
हिन्दी भाषा को भूल, मोह अंग्रेजी का पाल मत बढ़ाओ निराशा।
शान इसकी है निराली यही जगाओ अपने मन में आशा।
मंदारिन को पीछे धकेल आगे बढ़ती जाए यह भाषा।
पहला स्थान हासिल करने का सम्मान पाए यह भाषा।
कर विश्व प्रतिनिधित्व हमारा मान भी बढ़ाएँ यह भाषा।
सौहार्द, स्नेह, सम्मान और प्यार बढ़ाएँ ऐसी है यह भाषा।
संबंधों में मधुरता बढ़ा दूर करती दिलों की निराशा।
सरलता, सहजता, संग समरसता लिए हुए है यह भाषा।
निरन्तर हम सब का मान बढ़ाती जाती हमारी प्यारी भाषा।
विश्व पटल पर अपना अधिकार जमा हमारा गौरव बढ़ाती भाषा।
आज सबको जोड़ हिन्दी दिवस मना रही यह प्यारी भाषा।
आओ सब मिलकर कर करे इसका संरक्षण ये है हमारे ज्ञान की भाषा।

डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा' - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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