हिंदी भाषा - घनाक्षरी छंद - रविंद्र दुबे 'बाबु'

हिन्दी भाषा जानो! हिन्द जो है मेरा अभिमान, 
मातृभू की वंदनीय, भाषा सुखदायी है। 

सरल सहज तान, स्वर लय माला गीत, 
पहचान हमारी जो, हिन्दी सुरदायी है। 

भारतीय गुणगान, कह पाते सदा कवि, 
काल जीते कालजयी, छंद वरदायी है। 

सागर संग गागर भर लाते सुर मीरा, 
इतिहास विरासत, हमे बतलाई है। 

हिन्दी से दिन हमारी, हर काम हो इसी में, 
रात निंदि लोरी सुने, वो दीप की बाती है। 

राजनीति की ताक़त जनता मान कराती, 
हिन्दी भाषा की ख़ातिर, हिंद की हो जाती है। 

हिन्दी के उपयोग से, स्याही मान बढ़ा रहे, 
निज भाषी मित्र बने धरा भी गाती है। 

देव भाषा से उपजा, आओ! हम अपनाएँ, 
राष्ट्र ज्ञान शील सम, हिन्दी दोहराती है। 

रविन्द्र दुबे 'बाबु' - कोरबा (छत्तीसगढ़)

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