बदलता दौर - कविता - बिंदेश कुमार झा

कल जो भगा रहा था मुझे,
आज वह मुझे बुला रहा है।
कल जिस ने रुलाया था,
आज वही हँसा रहा है।

यह ज़िंदगी का बदलता दौर है,
जहाँ परिवर्तन की शिलाएँ हैं।
कुछ रास्ते ग़म से भरे हैं,
जिसमें कई बाधाएँ हैं।

पर यह बाधाएँ उन काँटों की तरह है,
जो फूल को बचाए रखते हैं।
संसार से उनकी रक्षा कर
हदय से लगाए रखते हैं।

बिन्देश कुमार झा - नई दिल्ली

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