हिन्दी दिवस - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'

हिन्दी मुझे माँ सी लगती है,
सीधी, सरल, सौम्य, प्यारी,
माना हर भाषा का ज्ञान है ज़रूरी,
जैसे हर रिश्ते की मिठास है ज़रूरी,
माँ सी प्यारी हिन्दी हमारी,
माँ की तरह रखो हिन्दी को सर्वोपरि।
क्षेत्रीय भाषाओं से समाहित हिन्दी,
सबको एक सूत्र में पिरोती हिन्दी,
देश का मान बढ़ाती हिन्दी,
भावो की अभिव्यक्ति है हिन्दी,
हिन्दुस्तान का परिचय देती हिन्दी,
हिन्दी से है पहचान हमारी,
अब विश्व पटल पर छाने की
है हिन्दी की बारी।
क्यूँ अपनाते हम विदेशी भाषा?
जब हिन्दी है हमारी मातृभाषा,
सम्मान हिन्दी का हम नहीं करेंगे
तो ग़ैरों से फिर क्या उम्मीद रखेंगे?
हिन्दुस्तान के दिल की धड़कन है हिन्दी,
हम सबके प्राणो में बसती है हिन्दी,
सिर्फ़ एक दिन हिन्दी दिवस–
मनाने से ही कर्तव्य नहीं पूरे हो जाते,
हिन्दी ही अपनाने, हिन्दी को वैश्विक भाषा
बनाने में क्यूँ नहीं हम क़दम बढ़ाते?
आओ हम अलख जगाएँ,
हमारी मातृभाषा हिन्दी को 
राष्ट्रभाषा का ओहदा दिलाएँ,
विश्व भर में परचम लहराएँ,
आओ हिन्दी का मान बढ़ाएँ,
हिन्दी का सम्मान बढ़ाएँ,
आओ गौरवगाथा हिन्दी की गाएँ।

कुमुद शर्मा 'काशवी' - गुवाहाटी (असम)

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