हिंदी का मान - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'

मातृ भाषा हो प्रतिष्ठित,
अभिव्यक्ति का माध्यम बने।
राजभाषा बन गई,
जन-जन की भाषा अब बने॥

मूल भाषा संस्कृत,
ब्रज, अवधी में बढ़ी।
भोजपुरी बुंदेली,
मिथिला, मगही छत्तीसगढ़ी॥

बघेली या हरियाणवी
कई राज्य में रहीं।
कन्नौजी हुई प्रचलित
खड़ी बोली अधिक रहीं॥

मेवाती जयपुरी,
मालवी, मारवाड़ी।
गढ़वाली कुमांऊँनी ,
नेपाली हिंदी पहाड़ी॥

हिमाचली हिंदी,
और बम्बइया अभी।
दक्खिनी हिंदी तो,
कलकतिया कभी॥

सारे भारत मे अब,
बहुत रूप में पाते।
फिजी, मॉरीशस,
सूरीनाम भी सुहाते॥

दुनिया भर में,
भारतवंशी रहते हैं।
अपने मन की बातें,
हिंदी में कहते हैं॥

आओ सब मिलकर,
हिंदी का सम्मान करें।
अपनी भाषा का हम,
निश्चित ही गुणगान करें॥

प्रवल राणा 'प्रवल' - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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