मिट्टी की ख़ुश्बू - कविता - मेघना वीरवाल

महका देती है 
साँसों से गुज़र 
मिट्टी की ख़ुश्बू
रोम-रोम को मेरे 
भाव विभूर कर देती
जब बरखा की 
एक बूँद का स्पर्श 
अंदर तक समा लेती है।

सुगन्धित कर देती
जग सारा
ख़ुद से ही अपनापन
एक महक से
जीवंत कर देती है।

मेघना वीरवाल - आकोला, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

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