संदेश
हस्ताक्षर - संस्मरण - संगीता राजपूत 'श्यामा'
कानपुर के जुहारी देवी गर्ल्स इंटर कॉलेज में वार्षिक समारोह था। बात तब की है जब हम कक्षा दस में पढ़ते थे। हमने मंच पर सितार वादन की प्रस…
अजायबघर - कविता - रवि तिवारी
पृथ्वी कितनी छोटी थी जब हमारे पास मिलने की आकांक्षा थी। आकांक्षाएँ सिमटती रही और एक दिन बहुत दूर हो गए हमसे हमारे ही शहर। एक तरह का अज…
कहाँ है जीवन - कविता - मेहा अनमोल दुबे
क्षण भर जीवन, मनभर जीवन, ना मन जीवन, ना तन जीवन, विचारो में तन्मय, "जीवन" अक्सर मन कि जलन-कूड़न में खोजते जीवन, पर, इसमें…
समाज स्वर्ग परिवार बने - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
हम जन्मजात नित पले बढ़े, समाज स्वर्ग परिवार मिले। हम क़र्ज़दार सामाजिक जन, व्यक्तित्व सुयश पहचान मिले। अरुणिम प्रभात नव जीवन के, बन गुरु …
वो दिन जाने कब आएगा - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 वो दिन जाने कब आएगा, दुख में आकर समझाएगा। सुख का यकीं न कर पगले मन, सुख चंचल है …
गँवईयत अच्छी लगी - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
माँ को न शहर अच्छा लगा न न शहर की शहरियत अच्छी लगी, वो लौट आई गाँव वाले बेटे के पास के उसे गाँव की गँवईयत अच्छी लगी। ममता भी माँ से थो…
काव्य में ढलती गई - गीत - शुचि गुप्ता
नव रूप लेकर मौन अंतस भावना छलती गई, निर्झर द्रवित उर वेदना शुचि काव्य में ढलती गई। सब बंद होते ही गए जो द्वार स्वप्निल थे सुखद, सम रेण…
अब आया समझ में - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
अब आया समझ में कि कवि कैसे बन जाते हैं, मन की पीड़ा हृदय तक जब हिलोर लेती है तब कवि बन जाते है। तुम ही तो हो समाज के असल पथ प्रदर्श…
दर्द-ए-नौकरी - कविता - ऋचा तिवारी
हर रोज़ की मुश्किल ये भी है, ये दर्द किसे बतलाए हम। एक मासूम से दिल को कैसे, रोज़ भला बहलाए हम। घर से निकले जब, जानें को, वो हाथ पकड़, य…
निराला जी की मज़दूरिन - कविता - रमाकान्त चौधरी
कितनी ही सड़कों पर बिछा उसका पसीना है, मगर क़िस्मत में उसकी आँसुओं के संग जीना है। किन-किन पथों पर उसने कितना पत्थर तोड़ा है, मेहनत से…
ग्रीष्म ऋतु - कविता - अनिल कुमार
किसी अबला के कपोलों पर शुष्क आँसुओं की लकीरों जैसे नदियाँ शुष्क कुछ गीली पड़ी है अंखियों में आँसू रीत गए जैसे तड़ाग खाली, सूखे-नीरस पड…
बंद लिफ़ाफ़ों में - कविता - अमृत 'शिवोहम्'
मौत से पहले कोई ज़मीन ख़रीदेगा, आने वाली पीढ़ियों के लिए, दे जाएगा अपनी औलादों को, ख़ुद से महँगा सोना चाँदी, ज़मीन जायदाद और न जाने क्या-क…
माँ - कविता - अमरेश सिंह भदौरिया
ज़िंदगी के अहसास में वो हर वक्त रहती, कभी सीख बनकर कभी याद बनकर। दुनिया में नहीं दूसरी कोई समता, सन्तान से पहले जहाँ जन्म लेती ममता…
चलते जाओ मत ठहरो - लेख - प्रवेंद्र पण्डित
जीवन के पथ में भय वश यदि तन ठहर गया या मन ठहर गया तो, क्या हासिल होगा, गतिशीलता जीवन का मूल गुण है जिसके बिना जीवित मनुष्य निर्जीव देह…
हमने भर ली उड़ाने ख़ता हो गई - ग़ज़ल - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
हमने भर ली उड़ाने ख़ता हो गई, सारी दुनिया ही हमसे ख़फ़ा हो गई। आँधिया आ गई देख मेरी उड़ान, जलने वालों की ये इंतिहा हो गई। जिनको माना था ये …
अमर प्रेम की अमर कहानी - गीत - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
1 अमर प्रेम की अमर कहानी। सुनों बेधड़क बंधु ज़ुबानी।। प्यार मुहब्बत के घर आँगन। फूल खिले हैं बागन बागन।। फागुन महिना सरसौ फूली। अमवा डा…
देह अगोचर - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हरियाली की देह अगोचर पात लगे झरने। पड़ता लू का पेड़, पत्ते, फूल पर साया। आग हुई सूर्य किरण बहुत क़हर बरपाया।। नदिया, झरने, ताल लगे हैं…
चिलचिलाती धूप - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
इस चिलचिलाती धूप ने जीना किया दुश्वार है। गर्म लू जलती फ़िज़ाएँ, हर तरफ़ अंगार है। आँधियाँ लू के थपेड़े, मन बदन बेज़ार है। पेट के ख़ातिर सभ…
दिशा दो नाथ - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
जैसा कहते आप हैं, करन चहौं दिन-रात। बिन आज्ञा नहिं डोलत, थर-थर पीपर पात॥ थर-थर पीपर पात, धरा को पग में बांधे। सारा जग का बोझ, धरे हो अ…
नारी - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
नारी है तो जग है, नारी है तो जीवन का सुंदरतम मग है। अबला नहीं हो तुम तुम तो हो सबला, बचपन में माँ-बाप का खिलौना और आँगन में जैसे तु…
सीता - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
जनक सुता सुकुमारी राम की अर्धांगिनी, सुंदर, सुशीला सिद्धांतों की पुजारिन। बेटी धर्म निभाया पिता का मान बढ़ाया पत्नी धर्म निभाने की ख़ात…
करो आत्म तन का मंथन - कविता - राघवेंद्र सिंह
जीवन रूपी क्षीर सिन्धु में, करो आत्म तन का मंथन। रत्न चतुर्दश ही निकलेंगे, स्वयं करो इसका ग्रंथन। निज श्रम मंदराचल मथनी हो, वासुकी नाग…
भाग्य - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
आवश्यकता है कर्म की, साहस और परिश्रम की। भाग्य भरोसे मत रहना, चलो राह अब श्रम की। बढ़ना जो चाहे आगे, शुरुआत आज ही कर। जो पाना है लक्ष…
गिरा - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली'
किसी की सोच किसी की सीरत किसी के लफ़्ज़ कड़वाहट से लिपटे है संभालने वालों ने गिरा दिया जो दिखावा पकड़ने का करते हैं। अहसासों में भीगे …
मन भाव विह्वल - कविता - सीमा वर्णिका
प्रस्तर हृदय में कैसी यह है हलचल, क्यों तुमसे मिल मन आज भाव विह्वल। बंजर ज़मीं सा उजड़ा हुआ मन का चमन, प्रिय विरह में सुलगती थी मन में …