क्षण भर जीवन,
मनभर जीवन,
ना मन जीवन,
ना तन जीवन,
विचारो में तन्मय, "जीवन"
अक्सर मन कि जलन-कूड़न में खोजते जीवन,
पर, इसमें भी, "कहाँ है "जीवन""?
सद्भाव समन्वयन दिप-प्रज्जवलन,
सद्गति का देता दिपक, "एकाकि" मन,
मौन संमिधा से अन्त:करण प्रज्वलन,
कहता यहि, जीवन मंथन...
न तू बड़ा, न मैं छोटा, ईर्ष्या द्वेष नहीं है जीवन
अपना ले कृष्ण रस सा निर्मल जीवन,
सिया त्याग सा अतुलित जीवन,
"राम" सत्य को मनाता जीवन,
राख होने के पूर्व, राख बनता जीवन,
"राख", से फिर बनता जीवन,
दरिया में बहता जीवन, नेकियो में रहता जीवन,
एंकात यात्रा करता ये मन,
क्षणभर में मिलता और मिटता जीवन।
मेहा अनमोल दुबे - उज्जैन (मध्यप्रदेश)