गिरा - कविता - अवनीत कौर 'दीपाली'

किसी की सोच
किसी की सीरत
किसी के लफ़्ज़
कड़वाहट से लिपटे है
संभालने वालों ने गिरा दिया
जो दिखावा पकड़ने का करते हैं। 
अहसासों में भीगे हुए
कुछ एहसास, 
यादों की रस्सी पर सूखे हैं
दुख की घटा, दर्द की आँधी
अक्षि से गिरे दो आँसू
तबाह सैलाब सा करते हैं।

अवनीत कौर 'दीपाली' - गुवाहाटी (असम)

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