हस्ताक्षर - संस्मरण - संगीता राजपूत 'श्यामा'

कानपुर के जुहारी देवी गर्ल्स इंटर कॉलेज में वार्षिक समारोह था। बात तब की है जब हम कक्षा दस में पढ़ते थे। हमने मंच पर सितार वादन की प्रस्तुति दी और जाकर दर्शक दीर्घा में बैठ गए क्योंकि कवि सम्मेलन होने वाला था। शाम के लगभग सात बज रहे होंगे।

हमारी कुछ सहेलियों ने कहा "संगीता! तुम्हे पता है? राष्ट्रकवि गोपाल दास नीरज जी आए हैं। चलो चलकर उनका आटोग्राफ लेते हैं।" हम उठकर अपनी सहेलियों के साथ मंच के पीछे की ओर चल दिए।

हमने कभी गोपाल दास नीरज जी को नहीं देखा था। मंच पर विनोद श्रीवास्तव,  प्रमोद अवस्थी, राजेन्द्र राजन आदि  कवि भी उपस्थित थे।
एक तख्त पड़ा था वहाँ सफ़ेद रंग का शाल ओढकर एक कवि बैठे थे जो अन्य कवियो की अपेक्षा बुज़ुर्ग लग रहे थे।
हमने एक सहेली से फुसफुसाते हुए कहा "तुम्हे पता है इनमें से गोपाल दास नीरज जी कौन हैं? 

किसी को पता नहीं था कि गोपाल दास नीरज जी कौन हैं ? 

सभी ने ना में सर हिला दिया और कहने लगी "तुम ही जाकर पूछ लो।"
हम थोड़ा झिझकते हुए तख़्त पर बैठे कवि के पास गए और कहा "क्या आप ही गोपाल दास नीरज जी है?"

उन्होंने हल्के से मुस्कुराकर कहा "हाँ मै ही हूँ।' 

हमने कहा "सर! हमे आपका आटोग्राफ चाहिए" और मैंने  अपनी एक छोटी सी डायरी का पन्ना खोलकर नीरज जी के आगे कर दिया।

नीरज जी ने डायरी में अपने हस्ताक्षर कर दिए।

वह डायरी लेकर हम अपनी कुर्सी पर आ कर बैठ गए और कवि सम्मेलन को पूरे मन से सुना।

लेकिन वास्तव में हम नीरज जी के व्यक्तित्व की महानता से अनभिज्ञ थे।

हमे बचपन से ही कविताएँ लिखने में बहुत रूचि थी।
धीरे-धीरे समय बीत गया और इक्कीसवें वर्ष की आयु में प्रवेश करते ही हमारा विवाह अलीगढ़ में हो गया।

विवाह के बाद हम गृहस्थी की उलझनो में फँस कर रह गए और लिखने का शौक़ पीछे छूट गया।

एक दिन मैं अख़बार पढ़ रही थे। तब हमे पता चला कि नीरज जी अलीगढ़ में ही रहते है। हमारा बहुत मन किया कि हम नीरज जी से मिलकर आए पर यह हो ना सका।

अगली बार जब हम कानपुर अपने मायके गए तब वह डायरी हमने बहुत ढूँढ़ी जिसमें नीरज जी ने अपने हस्ताक्षर किए थे।

लेकिन वह डायरी हमारी ही लापरवाही के कारण खो गई थी। दिल टूट गया।

सोचा शायद कभी नीरज जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होगा तो फिर से हस्ताक्षर ले लेंगे।

लेकिन यह हो ना सका एक रोज़ टीवी पर ख़बर आई कि राष्ट्रकवि गोपाल दास नीरज जी की मृत्यु हो गई है। एक लाचारी सी छा गई हमारे अन्दर।

इतने वर्षो में हम जान गए थे नीरज जी के असाधारण व्यक्तित्व के बारे में। लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। नीरज जी और उनके हस्ताक्षर दोनो खो चुके थे।

काश... मैंने वह हस्ताक्षर सहेज कर रखा होता।

संगीता राजपूत 'श्यामा' - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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