भाग्य - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'

आवश्यकता है कर्म की, 
साहस और परिश्रम की।
भाग्य भरोसे मत रहना,
चलो राह अब श्रम की।

बढ़ना जो चाहे आगे,
शुरुआत आज ही कर।
जो पाना है लक्ष्य अपना,
पा अपने बलबूते पर।

चढ़ती चींटी गिर-गिर कर,
मेहनत कर तू मर-मर कर।
भाग्य भरोसे मत रहना,
तू अभी शुरुआत कर।

न पाकर अंगूरों को,
उनको खट्टा मत कहना।
कामचोरी आलस के कारण,
मान भाग्य न पड़े रहना।

मेहनत करके बढ़ना आगे,
करना अपना नाम।
बढ़ते जाना, बढ़ते जाना,
न लेना भाग्य का नाम।

महेन्द्र 'अटकलपच्चू' - ललितपुर (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos