हरियाली की देह अगोचर
पात लगे झरने।
पड़ता लू का
पेड़, पत्ते, फूल
पर साया।
आग हुई
सूर्य किरण
बहुत क़हर बरपाया।।
नदिया, झरने, ताल लगे हैं
रह-रह कर डरने।
लस्सी, शर्बत और
सुराही के
दिन आए।
घर-घर में
सत्तू अपनी
साख जमाए।।
फ्रिज, एसी, कूलर
ज्यों ताप लगे हरने।
भीषण गर्मी
सड़कों पर तो
सन्नाटा है।
मुख्य सड़क को
चौराहों ने ही
बाँटा है।।
तपन सूरज की मेनका
जैसी लगी सँवरने।
अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)