नारी - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

नारी है तो जग है, 
नारी है तो 
जीवन का सुंदरतम मग है।
अबला नहीं हो तुम
तुम तो हो सबला, 
बचपन में
माँ-बाप का खिलौना
और आँगन में जैसे
तुलसी का हो गमला।
किशोर अवस्था में
भाई की सहपाठी बन जाती हो, 
माँ के कामों में हाथ बटाने
आगे बढ़ जाती हो।
माँ-बाप की चेहरे देखकर,
उसी रंग में ढल जाती हो, 
स्नेह देकर माता-पिता से
रूठ कर
अपनी बात मनवाती हो।
धैर्य का सबक़ लेना है
तो जनक दुलारी से लेना, 
और शौर्य का सबक
वीरांगना लक्ष्मी बाई
और झलकारी बाई से लेना।
छल न चलने पाए,
इसलिए
माता अनुसुइया ने
तीनों देवों को ललना बनाए।
समर्पण के मंत्र नारी ने ही
सिखाए हैं, 
सावित्री से सीखो
पति धर्म धारण कर
यमराज से पति के प्राण बचाए हैं।
त्याग और बलिदान का
उदाहरण पन्ना धाय ने दिया है, 
राजा के राजकुमार को
बचाने
अपने सुत को बलिदान किया है।
प्रेम का पाठ सिखाया है
इतिहास के पन्नों में
मीरा हैं राधा हैं और ब्रज की नारी हैं, 
नारी हैं सशक्त हैं
हमेशा मर्दों से भारी हैं।
नारी का सम्मान करोगे तो
सफलता रहेगी पग-पग, 
नारी है तो जग है
नारी है तो 
जीवन का सुंदरतम मग है।

रमेश चन्द्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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