दर्द-ए-नौकरी - कविता - ऋचा तिवारी

हर रोज़ की मुश्किल ये भी है,
ये दर्द किसे बतलाए हम।
एक मासूम से दिल को कैसे,
रोज़ भला बहलाए हम।
घर से निकले जब, जानें को,
वो हाथ पकड़, ये कहता है।
माँ छोड़ के मुझको मत जाओ,
झरना आँसू का, बहता है।
झूठी लालच देकर उसको,
मैं उसका दिल बहलाती हूँ,
ख़ुद के दिल पे, पत्थर रखके,
पत्थर दिल माँ, कहलाती हूँ।
मन व्याकुल हो, ये कहता है–
तू तो मेरे दिल का हिस्सा है,
पर छोड़ के अब, तुझको जाना,
ये रोज़ का मेरा, क़िस्सा है।

ऋचा तिवारी - रायबरेली (उत्तर प्रदेश)

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