अमर प्रेम की अमर कहानी - गीत - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'

1
अमर प्रेम की अमर कहानी।
सुनों बेधड़क बंधु ज़ुबानी।।
प्यार मुहब्बत के घर आँगन।
फूल खिले हैं बागन बागन।।
फागुन महिना सरसौ फूली।
अमवा डाली बौरन झूली।।
गन्ना खड़ा खेत मुस्काए।
अंगन-अंगन आग लगाए।।
घर के आँगन दौड़े भौजी।
आवन वाला भैया फ़ौजी।।
खेत और घर में नादानी।
सुनों बेधड़क बंधु ज़ुबानी।।
अमर प्रेम की अमर कहानी।।

2
मसुरी पकी खेत मां ठाढी।
लहटा सबसे ज़्यादा बाढी।।
बाग़-बगीचा बौर लदे है।
पोखर जल से नग्न पड़े है।।
गेहूँ का अलगै है आलम।
बिन सजनी के झूमें बालम।।
जौं का सीकुर आँखें फोड़ै।
बिन इंजन के गाड़ी दौडै़।।
फ़सलें आखिर माँगै पानी।
सुनों बेधड़क बंधु ज़ुबानी।।
अमर प्रेम की अमर कहानी।‌।

3
फ़सलों पे यौवन है छाया।
देखो ये ईश्वर की माया।।
खेत और खलिहान सजे हैं।
रंग-भंग के अलग मजे हैं।।
भाभी भैया करें ठिठोली।
भीतर खाने चलती गोली।।
आओ प्यार के सपने देखें।
मौसम के रंगों से सीखें।।
फागुन महिना चढै जबानी।
सुनों बेधड़क बंधु ज़ुबानी।।
अमर प्रेम की अमर कहानी।।

भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

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