चलते जाओ मत ठहरो - लेख - प्रवेंद्र पण्डित

जीवन के पथ में भय वश यदि तन ठहर गया या मन ठहर गया तो, क्या हासिल होगा, गतिशीलता जीवन का मूल गुण है जिसके बिना जीवित मनुष्य निर्जीव देह के समान ही है।
नैराश्य या किसी भी क्षेत्र में पराजय से प्रभावित होकर हम यदि लक्ष्य पाने के प्रयास ही छोड़ दें तो हमारे जीवन का अर्थ ही क्या रह जाता है। ज्ञान, विज्ञान, खेल, अध्ययन अथवा राजनीति आदि कोई भी विषय सफलता लिए प्रत्येक मनुष्य के समक्ष खड़ा है, ज़रूरत है तो बस इतनी सी की हम लक्ष्य प्राप्त करने हेतु रुचि जागृत करें। जिसके लिए दृढ़ संकल्प व परिश्रम परम आवश्यक है। दुनिया में जिन लोगों ने भी लक्ष्य को पाने की ज़िद ठानी वे अधिकांश सफल ही रहे, किंतु दुर्भाग्यवश यदि कोई असफल भी हुआ तो उसे निंदा के स्थान पर सराहना व सम्मान ही प्राप्त हुआ। उदाहरण के लिए चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, वीर सावरकर, तांत्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, नेताजी सुभाष बोस, खुदी राम बोस, व गांधी जी के अहिंसक प्रयास तथा राम प्रसाद बिस्मिल आदि स्वाधीनता के सिपाहियों के प्रयासों को भले ही तत्काल सफलता नहीं मिली किंतु आज़ादी के संघर्ष में उनके महत्वपूर्ण योगदान कौन भुला सकता है जिन्होंने ब्रिटिश सरकार की बुनियाद हिलाकर कर रख दी थी। तथा अंततः अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पड़ा। आज़ादी के बाद देश विभाजन के दंश को सम्पूर्ण राष्ट्र ने सहा किंतु निराश होने के स्थान पर देश के पुनर्निर्माण में अपनी मेहनत जारी रखी जिसके परिणाम स्वरूप आज भारत की गिनती विश्व के बड़े व महत्वपूर्ण राष्ट्रों में होती है। छुआछूत व भेदभाव लगभग मिट चुका है, तथा आशा है कि राष्ट्र शीघ्र ही इस अभिशाप से मुक्त होगा। अपवादों को छोड़कर वर्तमान व पूर्व की सरकारों ने यदि सकारात्मक प्रयास नहीं किए होते तो आज हम अंतरिक्ष के गहन रहस्यों से अनभिज्ञ ही रहते। इन सभी बातों में समाचार पत्र पत्रिकाओं, टी. वी. चैनलों का उल्लेखनीय योगदान रहा है, जिसके कारण हमने घर बैठे, देश, विदेश, धरती, आकाश आदि के विषय में बहुत कुछ जान लिया है व नित नूतन ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। अतः सम्पूर्ण राष्ट्र को विभिन्न विषमताओं को भूलकर, बिना रुके निरंतर प्रयास करते रहना है। ताकि हम विश्व समुदाय के समक्ष सम्मान के साथ खड़े रह सकें। अतः चलते जाओ ठहरो मत।

प्रवेन्द्र पण्डित - अलवर (राजास्थान)

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