प्रस्तर हृदय में कैसी यह है हलचल,
क्यों तुमसे मिल मन आज भाव विह्वल।
बंजर ज़मीं सा उजड़ा हुआ मन का चमन,
प्रिय विरह में सुलगती थी मन में अगन।
झंकृत वीणा के तार हुए भाव सकल,
कितनी पीड़ा देता था वह बीता कल।
नित जोड़ी थीं बातें कहने को तमाम,
राह तकती थीं आँखें सुबह और शाम।
मेरे दिल को क्यों कर रहा है यूँ विकल,
यह तुम्हारी आँखों से बहता अश्रुजल।
कोई गिला शिकवा नहीं तुमसे प्रियतम,
मिट गया सारा बीते ज़माने का ग़म।
देख कर तुमको आ गया ख़ुशियों में बल,
मिल गए हो सनम हो गया जीवन सफल।।
सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)