समाज स्वर्ग परिवार बने - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

हम जन्मजात नित पले बढ़े,
समाज स्वर्ग परिवार मिले।
हम क़र्ज़दार सामाजिक जन,
व्यक्तित्व सुयश पहचान मिले।

अरुणिम प्रभात नव जीवन के,
बन गुरु समाज पथ दर्शन के।
नित नवल स्नेह सिंचित जीवन,
परिवार स्वर्ग सत्प्रेरण दे।

सामाजिक उपकार मनुज पे,
कर्तव्य बहुल समाज प्रगति के।
चहुँ विकास निर्भेद ध्येय जब,
सुखद स्वर्ग समता विकास दे।

सबको शिक्षा स्वाधीन मिले,
बस चाह पूर्ण मन फूल खिले।
न दीन दुखी बिन वसन गेह,
स्वर्गिक ख़ुशियाँ मुस्कान मिले।

नारी हो कोई समाज में,
निज मातृ भाव हो उन सब में,
निर्भीत सबल सम्मानित सब,
वधू सुता बहन मिल स्वर्ग बने।

परिवार स्वर्ग वसुधा समाज,
समरसता भावुकता रख ले।
रह नीति रीति मधु प्रीति पथिक,
ध्येय सदा मानवता रख ले।

राष्ट्र प्रथम कर्तव्य समझ लें,
नित समाज सोपान समझ लें।
सब साथ चलें निर्माणक बन,
बस परिवार समाज समझ लें।

त्याग सत्य पथ संवाहक बन,
संघर्ष विघ्न शृंगार समझ लें।
निर्माण स्वर्ग सम हो समाज,
कीर्ति धवल पुरुषार्थ समझ लें।

सुख शान्ति विभव परिवार रहे,
तभी स्वर्ग तुल्य समाज बने।
हो हरित भरित धरती किसान,
शौर्य सबल भारत मान बढ़े।

सामाजिक प्राणी है मानव,
रक्षा विकास नित रख मन में।
सौहार्द्र प्रेम रख आपस जन,
अरुणाभ स्वर्ग परिवार बने।

हो सफल मनुज जीवन जग में,
गुण शील कर्म परहित मन में।
नवमीत प्रीत संगीत मधुर,
उन्नत समाज परिवार बने।

पुरुषार्थ सबल तक़दीर बने,
सद्भाव राष्ट्र तस्वीर बने।
उत्थान राष्ट्र मानक समाज,
भारत तिरंग उन्मुक्त उड़े।

संविधान ध्येय विकसित समाज,
बिन जाति धर्म सब सुखी रहे।
बन स्वर्ग प्रकृति भारत स्वतंत्र,
भारत समाज परिवार बने।

हर जगह मुदित हो गाँव शहर, 
सदा स्वर्ग घर परिवार बने। 
नित इन्द्रधनुष सतरंग सुखद, 
मुस्कान ख़ुशी हर अधर खिले। 


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