संदेश
मेरा सफ़र भी क्या ये मंज़िल भी क्या तिरे बिन - ग़ज़ल - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'
अरकान: मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन तक़ती: 221 2122 221 2122 मेरा सफ़र भी क्या ये मंज़िल भी क्या तिरे बिन, जैसे हो चाय ठंडी औ तल्ख़ यूँ…
विश्वास - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
कभी उन पर विश्वास न करना, जिनका चरित्र है मौसम सा, जो क्षण-क्षण, पल-पल बदलता है, कोई रूप नहीं होता जिनका। कभी उन पर विश्वास न करना, जि…
सावन मास - दोहा छंद - विशाल भारद्वाज "वैधविक"
कृपा हो महाकाल की, जन मानुष के साथ। अब कोरोना ख़त्म हो, कोई न हो अनाथ।। आते काशी घाट पर, नित दिन जन समुदाय। चाह स्वर्ग की रख सभी, करते …
मेरा सावन सूखा सूखा - गीत - अभिनव मिश्र "अदम्य"
विरह व्यथा की विकल रागिनी, बजती अब अंतर्मन में। कितनी आस लगा बैठे थे, हम उससे इस सावन में। बरस रहे हैं मेघा काले फिर भी मेरा मन मरुथल,…
जीवन डगर - कविता - निशांत सक्सेना 'आहान'
आगे सिर्फ़ वही बढ़ते हैं, जो धैर्य का रहस्य जानते हैं, आत्मानिष्ठा से क़दम बढ़ा कर, युद्ध क्षेत्र में उतर जाते हैं, नहीं करते निंदा किसी…
छवि (भाग ११) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(११) दिव्य-चक्षु पाते ही अर्जुन, बरबस जड़वत हो गए। सीमा पार किए ज्ञानी की, दैव-जगत में खो गए।। परम रूपमैश्वर भगवन थे, सम्मुख पार्थ के ख…
राष्ट्र धर्म चहुँ प्रगति में - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'
मानवता सबसे बड़ा, सभी धर्म का मंत्र। रहें प्रेम सद्भाव से, जनहित में हो तंत्र।। रख विचार सद्भाव से, दें मनभाव विनीत। वाणी हो वश संयमित…
मेरी अभिलाषा - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
मेरे मन की यह अभिलाषा, पूरी हो जन जन की आषा। मिटे ग़रीबी और निराशा संस्कार बन जाए परिभाषा। सबको शिक्षा, इलाज मिले, अमीर ग़रीब का भाव हटे…
सरकारी दफ़्तर - हास्य कविता - सौरभ तिवारी
काली रातों में नहीं, होते अब अपराध। दिन में दफ़्तर खोलते साढ़े दस के, बाद।। ख़ून नहीं, ख़ंजर नहीं काग़ज़ के हथियार। लूट डकैती, सब करें पढ़े ल…
विश्वगुरु बनने की राह पर भारत - निबंध - रतन कुमार अगरवाला
भारत सदा ही विश्वगुरु रहा है जिसका केंद्र बिंदु आध्यात्म रहा है। अध्ययन, आराध्य और आध्यात्म का समायोजन भारत को फिर से विश्व का सिरमौर …
तू क्या है? - कविता - रवि कुमार दुबे
तू नूर है, तू मेरी ग़ुरूर है, तू मेरी है, तू जन्नत की हूर है। तू धूप है तू छाँव है, तू मेरी मोहब्बत की पनाह है। तू इश्क़ है, तू प्यार की…
नीलकंठ - कविता - मोनी रानी
आसमान में हमनें उसे उड़ते देखा, आसमानी पंख और नीले कंठो वाला पक्षी बहुत हीं प्यारा। उड़कर वो हमेशा बिजली की तारों पर बैठे हमारे मन को, ख़…
सुजाता ने पुकारा है - ग़ज़ल - प्रशान्त 'अरहत'
अरकान: मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन तक़ती: 1222 1222 1222 1222 तुम्हारी याद से ही हौसला बढ़ता हमारा है, बहुत नज़दीक कश्ती के हमारी अब …
राष्ट्र की व्यथा - कविता - रामासुंदरम
मेरी ईंट बजा गए मेरा गारा ले गए, अपने रजवाड़ों के ख़ातिर मुझे खंडहर बना गए, मेरी कोशिकाओं में जो अनवरत नदियाँ प्रवाहित होती थीं वे आज शु…
गंगा - कविता - सीमा वर्णिका
भगीरथ की तपस्या का फल, शिव जटाओं के खुल गए बल। गंगा अवतरण हुआ धरती पर, प्रवाहित मोक्षदायी अमृत जल।। गंगोत्री हिमनद नामक गोमुख, गंगा का…
फ़ैज़ ख़ुदा का जारी है - ग़ज़ल - अंदाज़ अमरोहवी
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा तक़ती: 22 22 22 2 फ़ैज़ ख़ुदा का जारी है। मुश्किल मुझ से हारी है।। आज भी है मौजूद यज़ीद, जंग तो आज भी जारी है। …
मज़दूर - कविता - कुमुद शर्मा "काशवी"
मैं हारा नहीं... हालातों का मारा हूँ जो डरता नहीं मेहनत से कभी, वो मज़दूर प्यारा हूँ। चाहे तपती धूप हो, या हो राह पथरीली कर्मपथ है जीवन…
सफलता का रहस्य - कविता - डॉ. रवि भूषण सिन्हा
दूसरों की ख़ूब सुनिए, उस पर मनन भी कीजिए ख़ूब। बात जो हो अपने काम की, उसे याद भी रखिए ख़ूब।। जीवन की जंग में, इसका कीजिए ख़ूब सदुपयोग। जीत…
लाॅकडाउन - संस्मरण - सरिता श्रीवास्तव "श्री"
लॉकडाउन अर्थात तालाबंदी। पिछले लॉकडाउन में मेरी छोटी बहन गर्भवती थीं उसका इलाज जिस डॉक्टर से चल रहा था वह दूसरे शहर की थीं। लॉकडाउन के…
डर ही डर - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
कोरोना का आतंक अभी कम हुआ नहीं, कि शुरू हो गया, कुदरत का ये द्वितीय क़हर है। गाँव हो या शहर, नदी या नहर, फँसी ज़िन्दगी, डर ही डर बस चह…
इश्क़ का चक्रव्यूह - कविता - आर्यन सिंह यादव
फँसा इश्क़ के चक्रव्यूह में मिलता ठौर नहीं है, सभी विरोधी हुए आज कोई मेरी ओर नहीं है। नही किसी को दोष यहाँ मैं ख़ुद ही गुनाहगार हूँ, प्य…
गुरु - कविता - बृज उमराव
बिन गुरु बहे न ज्ञान की गंगा, बिन गुरु जग अंधियारा। ज्यों बिन दीपक घना अँधेरा, अंधाकुप्प जग सारा।। गुरु की खोज मे जग जग भटके, मिले नही…
गुरु - आलेख - कर्मवीर सिरोवा
गुरु अपने सभी शागिर्दों पर रहमतें बरसाता है अगरचे ज़ुबाँ से बरसे या मास्टरजी के दिव्य डंडे से। जिसने ये ईल्म, नेमतें हासिल कर ली वो ख़ुश…