गंगा - कविता - सीमा वर्णिका

भगीरथ की तपस्या का फल,
शिव जटाओं के खुल गए बल।
गंगा अवतरण हुआ धरती पर,
प्रवाहित मोक्षदायी अमृत जल।।

गंगोत्री हिमनद नामक गोमुख,
गंगा का उद्गम स्थल यही प्रमुख।
मंदाकिनी बल खाती लहराती,
चीरती बाधाएँ जो मिलीं सम्मुख।।

हिमालय से बंगाल की खाड़ी,
बहती गंगा नदी तिरछी आड़ी।
विशाल भूभाग को देती जल,
दौड़ती पार कर मैदान पहाड़ी।।

जन जन की आस्था का आधार,
मोक्षदायिनी दैवीय भू अवतार।
पाप विमोचनी हर हर गंगे,
पवित्र जल कराता वैतरिणी पार।।

सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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