विश्वास - कविता - आराधना प्रियदर्शनी

कभी उन पर विश्वास न करना,
जिनका चरित्र है मौसम सा,
जो क्षण-क्षण, पल-पल बदलता है,
कोई रूप नहीं होता जिनका।

कभी उन पर विश्वास न करना,
जिनकी आदत है हवाओं सी,
जो कभी इधर तो कभी उधर,
आँधी वह सभी दिशाओं की।

कभी उन पर विश्वास न करना,
जिसकी चंचलता नदिया की धारा,
चाहे जितना भी प्रेम करो,
ना था, ना होगा कभी तुम्हारा।

हाँ! उस पर विश्वास करना,
जिसका वादा सच्चा हो फूल की तरह,
प्रेम दर्शाते बगिया में मिलेंगे,
नित मंदिर में चरणों की धूल की तरह।

जो कहते हैं विश्वास करो,
हम बगिया में रोज़ खिलेंगे,
जब तुम आकर देखोगे तो,
हँसते गाते तुम्हें मिलेंगे।

होती है रिश्तो में दृढ़ता जिसकी वजह से,
जो एक अद्भुत, अनमोल एहसास है,
बाँधी रहती है जो इंसान को इंसानियत से,
मज़बूत डोर वह विश्वास है।

आराधना प्रियदर्शनी - बेंगलुरु (कर्नाटक)

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