लाॅकडाउन - संस्मरण - सरिता श्रीवास्तव "श्री"

लॉकडाउन अर्थात तालाबंदी। पिछले लॉकडाउन में मेरी छोटी बहन गर्भवती थीं उसका इलाज जिस डॉक्टर से चल रहा था वह दूसरे शहर की थीं।

लॉकडाउन के दौरान मेरी बहन उनका इलाज नहीं ले पा रही थी। डिलीवरी का वक़्त जुलाई में था बच्चा सिजेरियन से होना था क्योंकि गर्भावस्था के दौरान उसे कुछ दिक़्क़तें थीं इसलिए सामान्य डिलीवरी की डाॅक्टर मना कर चुकी थी। घर वाले परेशान अब क्या किया जाए? लाॅकल डाॅक्टर से सबसे बात करली कोई सिजेरियन के लिए तैयार नहीं।
जुलाई का पहला दिन आ गया सभी कोशिश कर रहे थे लेकिन बात नहीं बन रही थी। सब ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि हे भगवान मदद करो।

तभी अचानक मेरे मामा के बेटे का फोन आया जो कि ग्वालियर चिकित्सालय में सर्जन हैं किन्तु वह गाइनेकोलॉजिस्ट नहीं है इसलिए उनसे चर्चा करने का मतलब ही नहीं था। उन्होंने घर के हालचाल पूछे और पूछा कि गुड़िया कैसी है उसकी डिलीवरी हुई क्या?

उनके इतना पूछते ही सारी बात से उन्हें अवगत कराया गया। उन्होंने कहा मुझे बताया क्यों नहीं? कोई क्या जवाब दें। उन्होंने कहा फ़िक़्र मत करो मैं कुछ करता हूँ। उन्होंने अपने साथियों से चर्चा कर जान पहचान निकाली और लोकल के एक गाइने से बात की और किसी तरह उसे राज़ी किया। गाइने इस बात के लिए तैयार हुआ कि वह मरीज़ को दूसरे दिन छुट्टी दे देगा।

दूसरे दिन 2 जुलाई बहन को प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया और दो घंटे के अंदर ही उसकी डिलीवरी हो गई। उसने एक बेटे को जन्म दिया। दूसरे दिन शाम को
हाॅस्पिटल से उसे छुट्टी दे दी गई। डाॅक्टर उसे घर देखने आते रहे।

सच ही कहा है धरती पर चमत्कार होते रहते हैं।
उस दिन मामा के बेटे का फोन हमारे लिए देवदूत का फोन साबित हुआ सब कुछ ठीक हो गया सबने ईश्वर को बहुत धन्यवाद किया। साथ ही मामा के बेटे का भी शुक्रिया अदा किया।

सरिता श्रीवास्तव "श्री" - धौलपुर (राजस्थान)

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