राष्ट्र धर्म चहुँ प्रगति में - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'

मानवता सबसे बड़ा, सभी धर्म का मंत्र। 
रहें प्रेम सद्भाव से, जनहित में हो तंत्र।।

रख विचार सद्भाव से, दें मनभाव विनीत।
वाणी हो वश संयमित, अरि मानस भी जीत।।

पुरुषोत्तम ज्ञानी निरत, दर्पण बने समाज।
परहित में तज जानकी, रामराज्य सरताज।।

महापुरुष की ज़िंदगी, दे जीवन संदेश।
त्याग, शील, परहित गुणी, प्रीति नीति परिवेश।।

मूढ़ कौन ज्ञानी यहाँ, तौले  कौन समाज।
तर्कयुक्त प्रमुदित हृदय, ज्ञानवान् हमराज़।।

धीर शील संयम मिलन, धर्म नीति संसार।
पौरुष जो हित कर्म जग, वही कीर्ति आधार।।

मानव जीवन श्रेष्ठ जग, मति विवेक से श्रेष्ठ।
राष्ट्र धर्म चहुँ प्रगति में, तभी मनुज हो ज्येष्ठ।।

समरसता हो देश में, आपस में सहभाग। 
दीन धनी समतुल्य बन, मानव धर्म सुहाग।।

नारी का सम्मान जग, मर्यादित अभिव्यक्ति। 
धर्म अपर सुख कामना, सोच मनुज हो शक्ति।।

सब शिक्षित पौरुष सबल, तन मन बने नीरोग। 
बन भविष्य दर्पण मनुज, धर्म न्याय संयोग।।

दान दीन अस्मित सुखद, जीवन रत उपकार। 
किन्तु लोभ मन छल कपट, फैला भ्रष्टाचार।।

महादान सब जन ख़ुशी, धन वैभव सुख चैन। 
नर नारी सब जन सुयश, क्षमादान सुख नैन।।

नेता जनता आज सब, झूठ लूट रत स्वार्थ। 
हिंसा दंगा भ्रष्ट रत, भूले पथ धर्मार्थ।।

प्रीति नीति मनमीत बन, करें दान मृदुभाष। 
तजे भ्रष्ट पथ चाह को, बने धर्म अभिलाष।।

डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली

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