सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)
मेरी अभिलाषा - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
मंगलवार, जुलाई 27, 2021
मेरे मन की यह अभिलाषा,
पूरी हो जन जन की आषा।
मिटे ग़रीबी और निराशा
संस्कार बन जाए परिभाषा।
सबको शिक्षा, इलाज मिले,
अमीर ग़रीब का भाव हटे।
बेटा बेटी का अब भेद मिटे,
मेरे मन की यह अभिलाषा।
गंदी राजनीति न हो,
वादे सारे ही पूरे हो।
ज़िम्मेदारी भी तय हो,
अपनी भी ज़िम्मेदारी हो।
स्वच्छ रहें सब नदियाँ नाले,
कहीं तनिक न प्रदूषण हो।
अतिक्रमण का नाम न हो,
क़ानून व्यवस्था का राज हो।
त्वरित न्याय मिले सबको,
मन में भेद तनिक न हो।
किसी बात का ख़ौफ़ न हो
जग में ख़ुशियाँ अपार हो।
मरने मारने का भाव न हो,
सीमा पर भी न तनाव हो।
भाई चारा सारे संसार में हो,
सबके मन में प्रेमभाव हो।
मँहगाई का वार न हो,
प्रकृति मार कभी न हो।
चिंता की कोई बात न हो,
मन मेंं कपट विचार न हो।
सामप्रदायिक दंगे न हों,
जाति धर्म की बात न हो।
सब चाहें सबका हित हो,
ख़ुशियों का भंडार भरा हो।
सामाजिक कुरीति न हो
बहन बेटियों में न डर हो,
नशे का व्यापार न हो
मेरे मन की अभिलाषा।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर