इश्क़ का चक्रव्यूह - कविता - आर्यन सिंह यादव

फँसा इश्क़ के चक्रव्यूह में मिलता ठौर नहीं है,
सभी विरोधी हुए आज कोई मेरी ओर नहीं है।

नही किसी को दोष यहाँ मैं ख़ुद ही गुनाहगार हूँ,
प्यार जताने चला बना नफ़रत का शिलाधार हूँ।

फलते फूलते उद्यानों की धीमी पड़ी बहार हूँ,
सब दर्दों को छुपा लिया क्या उम्दा कलाकार हूँ।

ग़म के अंधकार मे क्या आगामी भोर नहीं है,
सारे विरोधी हुए आज कोई मेरी ओर नहीं है।

इश्क़ बहुत बे-रहम हुआ दिल तंग हुआ आज़माने में,
उनमे भरा गुमान बहुत ये पता चला अफ़साने में।

इतना भी कमज़ोर नही कि डर जाऊँ प्यार जताने में,
अब मैं किससे डरूँ, हूँ पहले ही बदनाम ज़माने में।

साबित क्यों कर रहे अमन इज़्ज़त का दौर नहीं है,
सारे विरोधी हुए आज कोई मेरी ओर नहीं है।

मजबूरी मे फँसा समझ कुछ आता नही है मन में,
दर्द भरा है सीने मे हड़कम्प मच गया तन मे।

किस मोड़ पे खड़ी ज़िंदगी मेरी वक़्त बड़ा उलझन में,
इम्तिहान पर इम्तिहान मिल रहा हमें क्षण क्षण में।

थाम रखा है क़हर मेरा कुदरत पर जोर नही है,
सारे विरोधी हुए आज कोई मेरी ओर नहीं है।

आर्यन सिंह यादव - औरैया (उत्तर प्रदेश)

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