संदेश
गुरुवर - कविता - तेज देवांगन
वो गुरुवर तुम हो मेरे आधार, सीखा तुमसे जग सच्चाई, सीखा तुमसे जीवन का सार, वो गुरुवर तुम हो मेरे आधार। मैं था ख़ाली ताल बराबर, ईर्ष्या, …
गुरुवर की महिमा - कविता - सन्तोष ताकर "खाखी"
मस्तिष्क के कोने कोने में ज्ञान से रिक्त को, ह्रदय के क़तरा क़तरा भाव से रहित को, कर ज्ञान भाव से युक्त एक सार्थक उत्पत्ति बनाता है जो, …
मेरे गुरुवर दया करो - कविता - डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
अन्धकार में भटक रहा हूँ, ज्ञान का दीप जला दो। मुझ पर गुरुवर दया करो, नई दिशा दिखला दो।। तम रूपी ये दानव चारो ओर से मुझको घेरे। इसमें …
सावन आया - कविता - राजकुमार बृजवासी
सावन आया सावन आया बैरागी मन झूमे गाए, पपीहे ने शोर मचाया सावन आया सावन आया। गरज रहे बादल अंबर में बिजली चम चम चमक रही, देखो छाए बदरा घ…
मिले ग़म जो तुमको भुलाना पड़ेगा - ग़ज़ल - आलोक रंजन इंदौरवी
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 122 122 122 122 मिले ग़म जो तुमको भुलाना पड़ेगा। तुम्हें फिर से अब मुस्कुराना पड़ेगा। ज़माना है …
मेरे सपनों को साकार होने दो - कविता - कुलदीप सिंह रुहेला
मेरे सपनों को साकार आज होने दो, मुझको आज साहित्यकार होने दो। चंद पन्नों का क़लम का राही हूँ मैं, मुझको इसका पहरेदार रहने दो। है गुज़…
समरसता मुस्कान जग - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
आज फँसा मँझधार में, सत्य मीत अरु प्रीत। लोभ अनल में जल रहा, समरसता संगीत।। मीशन था अंबेडकर, समरसता संदेश। समता ही स्वाधीनता, दलित हरि…
साहचर्य का अस्तित्व - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
ये मत सोचो कि जो तुमसे जुड़े हैं, तुम उनसे अच्छे हो बल्कि ये सोचो कि तुम जिनसे जुड़े हो वे तुमसे अच्छे हैं। बलखाती नदी, शीतल पवन, हरे-…
प्रश्न स्त्री बौद्धित्व का - कविता - ममता रानी सिन्हा
सदियों से ही पूछ रही है एक स्त्री, प्राचीन दोराहे पर अबतक खड़ी। क्या गृहदेहरी के बाहर भी कभी, उचित सुसम्मान दे पाओगे मुझे? जैसे मैं लगा…
बरस बरस मेघ राजा - घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी
मेघ राजा बेगो आजा, बरस झड़ी लगा जा। सावन सुहानो आयो, हरियाली छाई रे। अंबर बदरा छाए, उमड़ घुमड़ आए। झूल रही गोरी झूला, बाग़ा मस्ती छाई…
जवान ज़बान - कविता - संजय कुमार
मन की मनोव्यथा सुना, दिल के भेद बता देना, आँसूओं को आवाज़ व होठों को आभास देना। ज़बान की जवानी होती हैं। लक्ष्य को राह देना, काम पर ध्या…
निशा चुभाती ख़ंजर - कविता - अंकुर सिंह
प्रेम रस में तेरे, भीगा मेरा मन। तुम हो प्रिये, साहित्य की रतन।। शब्दों की तुम, पिरोई हो माला हो। साहित्य की तुमने सजोई वर्ण माला हो।…
नाम लिखा दाने-दाने में - ग़ज़ल - अविनाश ब्यौहार
अरकान : फ़ेल मुफ़ाईलुन फ़ेलुन फ़ेल तक़ती : 21 122 22 21 नाम लिखा दाने-दाने में। लुत्फ़ मिला करता खाने में।। सात सुरों की उड़ती खिल्ली, रेंक…
मासिक धर्म और समाज का नज़रिया - कविता - राजेश "बनारसी बाबू"
ये ऊपरी अँधेरी कोठरी से कैसी कहरने की आवाज़ आई है? ये कैसी चिल्लाहट और रोने की चीख़ दे रही सुनाई है? लगता है आज अपनी छोटी बिटिया को मास…
छवि (भाग १०) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१०) छवि देखता रहता मानव, मायावी संसार की। चर्म-चक्षु दिखलाता रहता, चीज़ें विविध प्रकार की।। ज्ञान-चक्षु यदि खोले मानव, दिख जाता कुछ और…
बस आग होनी चाहिए - कविता - विनय विश्वा
बिन हवा के लहरें नहीं उठती बिन चिता के देह बिलीन न होती होती है बस एक आग चाहे वो आग पानी में हो या शरीर में। बस आग होनी चाहिए चाहे दु…
पर्यावरण और मानव - घनाक्षरी छंद - अशोक शर्मा
धरा का शृंगार देता, चारो ओर पाया जाता, इसकी आग़ोश में ही, दुनिया ये रहती। धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और ज़मीं, जीव सहभागिता को, आवरन क…
शब्द - कविता - संजय राजभर "समित"
मैं शब्द हूँ, दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, योग का संचयन और व्यक्त करने का माध्यम हूँ। जहाँ-जहाँ जिस समूह ने जिस-जिस रूप में रेखांकित किया, …
स्त्री चिंतन - कविता - डॉ. मोहन लाल अरोड़ा
स्त्री का अस्तित्व है महान, माँ बनना भी है सम्मान, सब जगत पर है अहसान। कब हटेंगे यह इश्तहार बड़े अस्पतालों से, यहाँ लिंग परीक्षण नहीं …
नाचूँ बन मैं मधुबाला - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ओ दीवाने प्यार ने तेरे, पागल मुझको कर डाला। ओ मस्ताने प्यार ने तेरे, पागल मुझको कर डाला। प्यार से मारी दिल पे गोली, घायल मुझको कर डाला…
छवि (भाग ९) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(९) कर्मभूमि है धरती सारी, कर्ता मनुज महान है। प्रत्येक मनुज के उर तल में, शक्ति और शुचि ज्ञान है।। कर्त्यव्यों के निर्वाह हेतु, शैली …
नज़रिया - कविता - कर्मवीर सिरोवा
बदल दिया नज़रिया इंसानों ने सोचने का, सही और ग़लत को ना पाए समझ, जब सामने थी अपने मंज़िल, तो भूल चुका था मंज़िल पाने का रास्ता, कुछ ना समझ…
यहाँ पर कौन आया है - ग़ज़ल - प्रशान्त "अरहत"
अरकान: मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन तक़ती: 1222 1222 1222 1222 खुली खिड़की हिला पर्दा यहाँ पर कौन आया है। मुझे लगता बहारों ने वही फिर…
नीयत - कविता - सुनील धाकड़
नीयत का तू खाली झोला जग में घूमे लटकाए, जैसी करनी वैसी भरनी का फल तुझे मिल जाए। तन को हराम बनाकर, सूझा कमाने का उपाय, ब्लैकमेल की तकनी…
मैं लेखिका हूँ - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
जब एहसासों का समंदर उमड़ा हो, जब जज़्बात करवट लेने लगते हैं। जब भावनाओं का सामंजस्य बढ़-चढ़कर, अपना आकार लेने लगते हैं।। जब कोई अपनी स…