गुरुवर की महिमा - कविता - सन्तोष ताकर "खाखी"

मस्तिष्क के कोने कोने में ज्ञान से रिक्त को,
ह्रदय के क़तरा क़तरा भाव से रहित को,
कर ज्ञान भाव से युक्त एक सार्थक उत्पत्ति बनाता है जो, गुरुवर की महिमा ऐसी है वो।।
गलियों के उस बचपन से भविष्य के उज्जवल ख़्वाब को, घनी अँधेरी दीवारों से रोशनी की एक मोहर को,
'अ' से अनपढ़ को 'ज्ञ' से ज्ञानी तक पहुँचाता है जो,
गुरुवर की महिमा है ऐसी है वो।।
क्या भला क्या बुरा समझाया हर भेद को,
क्या तेरा क्या मेरा बतलाया सबसे परे ज्ञान को,
हर आदर्श पर चलकर बनाता है महान जो,
गुरुवर की महिमा ऐसी है वो।।
काग़ज़ के पन्ने पर अंकित जड़ आकृति को,
चित्रकार की रंगहीन भ्रमित कलाकृति को,
भर रंग चेतन भाव से एक सुंदर कलाकृति बनाता है जो, गुरुवर की महिमा है ऐसी है वो।।

सन्तोष ताकर "खाखी" - जयपुर (राजस्थान)

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