मिले ग़म जो तुमको भुलाना पड़ेगा - ग़ज़ल - आलोक रंजन इंदौरवी

अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 122 122 122 122

मिले ग़म जो तुमको भुलाना पड़ेगा।
तुम्हें फिर से अब मुस्कुराना पड़ेगा।

ज़माना है ज़ालिम तुम्हें लूट लेगा,
कलेजे को पत्थर बनाना पड़ेगा।

समझते रहे जो हमें एक बुज़दिल,
उन्हें भी नया कुछ दिखाना पड़ेगा।

नया है सफ़र मुश्किलें तो बहुत हैं,
मगर अब क़दम तो बढ़ाना पड़ेगा।

अगर दिल मिले हैं तो हम भी मिलेंगे,
मुहब्बत की दुनिया बसाना पड़ेगा।

चले आइए आप इस दिल के अंदर,
हमें इश्क़ को आज़माना पड़ेगा।

मुहब्बत की ख़ातिर जिएँगे मरेंगे,
किया है जो वादा निभाना पड़ेगा।

आलोक रंजन इंदौरवी - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos