समरसता मुस्कान जग - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

आज फँसा मँझधार में, सत्य मीत अरु प्रीत। 
लोभ अनल में जल रहा, समरसता संगीत।।

मीशन था अंबेडकर, समरसता संदेश।
समता ही स्वाधीनता, दलित हरित उपवेश।।

तार तार अनुबन्ध अब, क्षत विक्षत ईमान। 
नश्वर इस संसार में, बिकता है इन्सान।।

मातु पिता भाई समा, शिक्षक मीत जहान।
सदाचार परहित विनत, समरसता वरदान।।

भौतिक सुख चाहत बला, है विनाश तूफ़ान।
नीति प्रीति यश त्याग सब, भूले बन शैतान।।

डूब रही इन्सानियत, नौका प्रीति ज़मीर।
सत्य न्याय पतवार से, बदल राष्ट्र तस्वीर।।

बनें सेतु जग शान्ति का, समरसता बन्धुत्व।
हो शिक्षा सापेक्ष जग, बचे मनुज अस्तित्व।।

हो रचना उन्नति वतन, समरसता मधुशाल।
शान्ति सुखद ख़ुशियाँ मुदित, सेतु बन्ध रसधार।।

समरसता के रंग में, सराबोर परिवेश।
अनेकता में एकता, दे भारत संदेश।।

समरसता के रंग में, सराबोर त्यौहार।
होली मानक एकता, सद्भावन उपहार।।

होली नित सौहार्द्र का, प्रीति मिलन त्यौहार।
मान कीर्ति सुख सम्पदा, मानवता उपहार।।

दुर्गाराधन पर्व यह, समरसता त्यौहार।
ख़ुशी दीप दीपावली, बनी प्रकृति उपहार।।

दौलत की चाहत बड़ी, लेता मज़हब आड़।
उसूल बिन इन्सानियत, समरसता दो फाड़।।

जीवन हो मधुरिम सुखद, सदा सत्य व्यवहार।
अगर सरल निर्मल हृदय, वसुधा ही परिवार।।

भगवा मानक शौर्य का, चहुँमुख सुखद विकास।
समरसता मुस्कान यश, नीति प्रीति विश्वास।।

कवि निकुंज व्यवहार से, बाँटे जग मुस्कान।
परिवारिक  जीवन  मधुर, गाएँ समरस गान।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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