नीयत - कविता - सुनील धाकड़

नीयत का तू खाली झोला जग में घूमे लटकाए,
जैसी करनी वैसी भरनी का फल तुझे मिल जाए।
तन को हराम बनाकर, सूझा कमाने का उपाय,
ब्लैकमेल की तकनीकी से, ढेरों पूँजी मिल जाए।
कर्म-पुरूष की देख तरक्की जी तेरा ललचाए,
दानव मन से सोचा तूने कैसे इसको हड़पा जाए।
करके बंद आँखें अपनी, बुरा जो करने तू चला,
करनी पर डालकर पर्दा, भला जो बनने तू चला।
करके कर्म बुरे तूने, सोचा मैं बडा होशियार हूँ,
काला मुँह छुपाकर बोला, मैं सत्य का सुल्तान हूँ।
जन्म लिया है इस धरती पर सच्चे वीर सपूतों ने,
उन सबको भी हैरान कर दिया तेरी इन करतूतों ने।
टिकता नही असत्य देर तक, क्यों इतना नादान है,
मिट गया घर-बार उनका, नीयत से जो बेईमान है। 
साथ लेकर क्या आया था क्या साथ लेकर जाएगा,
तूने ऐसे कर्म किए है ,बच्चों को क्या सिखलाएगा।
अगर तुझे बढना है आगे, तो कर्म से क्यों कतराता है,
हिम्मत है तो आगे बढ़, चढती बेल क्यों काटता है।
कर्म-पुरूष की महफ़िल में जब भी तू वहाँ आएगा,
झाँककर तू अन्दर अपने शर्माएगा और पछताएगा।
जन्म लिया जब मानव का तो मानवता के कर्म कर,
क्यों बनता है दानव तू, मानवता का फ़र्ज़ अदा कर।
नीयत ही तो व्यक्तित्त को भला और बुरा बतलाती है, 
नीयत साफ़ है तो कठिनाईयाँ जीवन में कहाँ आती है।
इतिहास के पन्नों पर भी अमर है नाम कर्मयोगी का,
खोट रही दिल में जिनके व्यर्थ रहा जीवन भोगी का।
विनाश कराया इस नीयत ने रावण सहित लंका का,
इस नीयत ने मान बढाया स्वाभिमानी स्वावलंबी का।
वसुन्धरा के कपूतो कर्मता की आहट तुम्हें रही पुकार,
फ़रेबी नीयत को मन से निकाल, कर तू कर्मों में सुधार। 

सुनील धाकड़ - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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