जवान ज़बान - कविता - संजय कुमार

मन की मनोव्यथा सुना,
दिल के भेद बता देना,
आँसूओं को आवाज़
व होठों को आभास देना।

ज़बान की जवानी होती हैं।

लक्ष्य को राह देना,
काम पर ध्यान देना,
मजबूरी में मौन
व भाव का गौण होना।

ज़बान की जवानी होती हैं।

मन मचल करके,
भावना को कुचल करके,
बात के लहजे में रहना
व बिना बोले सब कह देना।

ज़बान की जवानी होती हैं।

विचारों में तालमेल करके
दो लफ़्ज़ प्रेम से कहके
वचनों की अहमियत
व जीवन पर जीभ का प्रभाव होना।

ज़बान की जवानी होती हैं।

संजय कुमार - सांचौर, जालोर (राजस्थान)

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