छवि (भाग ९) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(९)
कर्मभूमि है धरती सारी, कर्ता मनुज महान है।
प्रत्येक मनुज के उर तल में, शक्ति और शुचि ज्ञान है।।
कर्त्यव्यों के निर्वाह हेतु, शैली शक्ति विशिष्ट है।
अज्ञान आसुरी जग है जानो, करता सदा अनिष्ट है।।

गुण अरु कर्मों पर आधारित, मानव जाति विभक्त है।
हर मानव काया में बहता, लाल रंग का रक्त है।।
मान लिया आधार जन्म को, जयचंदों ने सच यही।
मानव को मानव से बाँटो, धर्मग्रंथ कहता नहीं।।

कर्माधारित वर्ण-विभाजन, ग्रंथों में उल्लेख है।
सुव्यवस्थित समाज संचालन, रीति-नीति अनुलेख है।।
कर्म बनाया ऐतरेय को, महर्षि ऐतरेय यथा।
राजा विश्वामित्र बने थे, राजर्षि सत्य यह कथा।।

कर्मों के अनुसार सभी को, मिला मान अरु न्याय भी।
जय असत्य पर किया सत्य ने, हार हुई अन्याय की।।
कर्म बनाता ईश मनुज को, कर्म बनाता दैत्य है।
यथा कर्म फल वैसा मिलता, बात सरासर सत्य है।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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