जब एहसासों का समंदर उमड़ा हो,
जब जज़्बात करवट लेने लगते हैं।
जब भावनाओं का सामंजस्य बढ़-चढ़कर,
अपना आकार लेने लगते हैं।।
जब कोई अपनी संवेदनाओं से,
अक्षरों को भिगोने लगता है।
जब सभ्यता और कल्पनाओं को,
शब्दों में पिरोने लगता है।।
जब पुस्तक और पन्ने ही साथी बन जाते हैं,
जब सोच व्यवहार बन जाता है।
जब क़लम व स्याही की संगत ही हो सर्व प्रमुख,
तब वह शख़्स लेखक कहलाता है।।
मैं तो हूँ एक काव्य आराधक,
भाषा की समर्पित सेविका हूँ।
मेरी भक्ति, संस्कृति, अभिलाषा है लेखन,
मैं एक स्वच्छंद, स्वतंत्र लेखिका हूँ।।
आराधना प्रियदर्शनी - बेंगलुरु (कर्नाटक)