गुरुवर - कविता - तेज देवांगन

वो गुरुवर तुम हो मेरे आधार,
सीखा तुमसे जग सच्चाई,
सीखा तुमसे जीवन का सार,
वो गुरुवर तुम हो मेरे आधार।

मैं था ख़ाली ताल बराबर,
ईर्ष्या, रोष लिए जहाँ पर,
तूने डाला मुझमें जल का धार,
वो गुरुवर तुम हो मेरे आधार।

मैं अज्ञानी अल्प बराबर,
बुद्धि हीन, ना मेरा कल्प यहाँ पर,
कैसे चुकाऊँगा मैं तेरा आभार,
वो गुरुवर तुम हो मेरे आधार।

लड़खड़ाते पग को चलना सिखाया,
मैं जो गिरा मुझे उठाया,
कर दिया मुझमें ये कैसा चमत्कार,
वो गुरुवर तुम हो मेरे आधार।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos