स्त्री चिंतन - कविता - डॉ. मोहन लाल अरोड़ा

स्त्री का अस्तित्व है महान,
माँ बनना भी है सम्मान,
सब जगत पर है अहसान।
कब हटेंगे यह इश्तहार बड़े अस्पतालों से,
यहाँ लिंग परीक्षण नहीं किया जाता सालो से। 
पुत्र जन्म पर दी जाने वाली बधाईयाँ,
बेटी जन्म पर मिलने वाली रुस्वाइयाँ,
कोई बात नहीं आजकल बेटा बेटी एक जैसे है,
यह कहना आसान परंतु मन से सब वैसे है।
फिर ना नोच कर फेंक दी जाए गटर मे कोई बच्ची,
जो नवरात्रो में पुजी गई थी देवी सच्ची।
दोहरी हुई पीठ पर बच्चा बाँध कर,
ईंटों और सीमेंट को कंधे पर लाद कर,
चढती हुई गरीब औरत ना तौली जाए,
ठेकेदार की नजरो में ना बोली जाए।
फिर से ना किसी अबला पर गोली चलाई जाए,
ना तेज़ाब से राह चलती ख़ूबसूरत शक्ल जलाई जाए। 
नहीं कर सकते किसी स्त्री का सत्कार,
बड़ा ही घिनौना और आपराधिक है बलात्कार।
घर से बाहर निकलने पर घुरती गंदी निगाहे,
बेचारी शर्म से सिमटती भरती ठंडी आहे।
कब बंद होंगे कोठे और चकले,
क्यों बिकेंगी गोश्त की तरह सुंदर शक्ले।
कब हटेंगी समाज से यह सब बुराइयाँ,
कब दे पायेंगे हम अपनी बहन बेटियों को अच्छाइयाँ।
कब बंद होंगा ख़रीद फ़रोख़्त का व्यापार,
क्यों दिया जाए गाड़ी और सोने का हार।
क्यो दी जाए रुपये और रसूख की फाँस,
क्यो ढोए बाप बेचारा ज़िंदा जलाई लड़की की लाश।
हम सब समझे अपना धर्म और मान,
करे हम सब हर बहन बेटी का सम्मान।

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा - ऐलनाबाद, सिरसा (हरियाणा)

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