बस आग होनी चाहिए - कविता - विनय विश्वा

बिन हवा के लहरें
नहीं उठती
बिन चिता के
देह बिलीन न होती
होती है बस 
एक आग
चाहे वो आग
पानी में हो
या शरीर में।
बस आग
होनी चाहिए
चाहे दुनिया को
उजाले के लिए
या अपने को
जलाने के लिए।

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

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