संदेश
कोरोना की हवाबाजी - आलेख - परमजीत कुमार चौधरी
देश और दुनिया में कोरोना की दूसरी लहर फिर से परवान पर चढ़ी है। पता नहीं यह और कितने दिन रहेगी हालांकि पिछले बार की तुलना में इस बार डर…
सहर - गीत - रमाकांत सोनी
सहर से लेकर शाम तक, गोकुल वृंदावन धाम तक। मुरली मोहन मधुर सुनाते, प्यारी माधव की है झलक।। रवि रथ आया सहर में, नव उर्जा लाया पहर में। अ…
याद रखना ये बात - कविता - अंकुर सिंह
मन में है एक चहक, हो हममें प्रेम की महक। ना हो दौलत, ना हो चाँदी, हो पर खुशियों की लहक। मन में ना हो कोई कसक, सुख शांति संग प्यार हो। …
शिवशरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - आलेख - विमल कुमार "प्रभाकर"
हिन्दी साहित्य के सुविख्यात वरिष्ठ कवि, लेखक, आलोचक, सुधी सम्पादक शिवशरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' समकालीन साहित्य में लोकप्रिय रच…
दीवारों के भी कान होते है - ग़ज़ल - एल. सी. जैदिया "जैदि"
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलात तक़ती : 122 122 1221 दीवारों के भी कान होते है, ऐसे भी देखो इंसान होते है। शतरंज के ये माहिर मोहरे, खिलाड़ी की…
दया इस बार भी कर दो माँ - गीत - गुड़िया सिंह
जब जब भी विपदा आई, तब तब तुमने अवतार लिया, मनुष्य से देवताओ तक के, कष्टों का, तुमने ही, तो मैया, संहार किया। तुम चण्ड-मुण्ड विनाशिनी, …
लकड़हारिन - कविता - गोलेन्द्र पटेल
तवा तटस्थ है चूल्हा उदास, पटरियों पर बिखर गया है भात। कूड़ादान में रोती है रोटी, भूख नोचती है आँत, पेट ताक रहा है गैर का पैर। खैर जनतंत…
तुम्हारी कमी - कविता - प्रवीन "पथिक"
राधिके! आज तुम्हारी कमी, महसूस हो रही है मन को। लगता कोई नहीं है मेरा, तुम्हारे सिवा। कभी डाँटना तो सुन लेती चुपचाप, मूक समान। कभी पलट…
ये दस चीज़ें बिकाऊ नहीं - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ज़िंदगी में हर चीज़ पैसे से नहीं खरीदी जा सकती। बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जो पैसे से नहीं जा खरीदी जा सकती, उसमें 10 ऐसी मुख्य चीज़ें हैं जो …
मुझे फ़ख़्र है - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
कभी बीज था जो किसी वृक्ष का, कभी पादप, औ अब वो बृक्ष बन गया। जीता था कभी जो स्वयं के लिए, जीना जनहित अब बस लक्ष बन गया।। वो अठखेलिया…
वैसाखी नवरात्र दे - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
आज चैत्र नवरात्र शुभ, विक्रम संवत हर्ष। वैसाखी पावन दिवस, हिन्दू नूतन वर्ष।। नवल फ़सल हरितिम धरा, मुदित आज परिवेश। दीन धनी सब हैं सुखी,…
ज़िंदगी - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
ज़िंदगी की राहें बड़ी टेड़ी-मेड़ी, इन्हें सीधा कर नहीं तो बन जाएँगे जीवन की बेड़ी। अरमानों के ख़्यालों का पुलिंदा मत बाँधा कर, जो अरमान साका…
सुनो तो मुझे भी ज़रा तुम - ग़ज़ल - अमित राज श्रीवास्तव "अर्श"
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 122 122 122 सुनो तो मुझे भी ज़रा तुम, बनो तो मिरी शोअरा तुम। ये सोना ये चाँदी ये हीरा, है खोटा मगर …
मानव के दुष्कृत्य - कविता - विनय "विनम्र"
क्या रचा था प्रकृति ने पहुँचा कहाँ इंसान है, कफन में लिपटा हुआ ख़ुद को मानता भगवान है। नदियों को विष से सींचकर संवेदना को पी गया, वृक्ष…
तुम अगर राधिका बन सको हे प्रिये - गीत - मोहित बाजपेयी
तुम अगर राधिका बन सको हे प्रिये, मैं तुम्हारा ही घनश्याम हो जाऊँगा। हम है उषा और संध्या सरीखे मगर, रंग हूँ रंग में मैं भी खो जाऊँगा।। …
सख़्त शहर नहीं क़बीले हैं - सजल - अविनाश ब्यौहार
सख़्त शहर नहीं क़बीले हैं। हरकत से ढीले-ढीले हैं।। लगे हुए जो घर के सम्मुख, कनेर वे पीले-पीले हैं। बादाम-दशहरी या चौसा, यहाँ आम बहुत रसी…
बस सँवरती रहे - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
वो गरजती रहे, वो बरसती रहे। मेरी जान है वो याद मुझे करती रहे। ऐ ख़ुदा तुझसे इतनी सिफ़ारिश मेरी, वो जहाँ भी रहे बस सँवरती रहे।। हो ना हैर…
ज़िन्दगी ने - कविता - संदीप कुमार
क्या बताएँ हमें क्या दिखाया है ज़िन्दगी ने, क़सम से बहुत ज्यादा तड़पाया है ज़िन्दगी ने।। जिन रास्तों से दूर रहना चाहता था मैं, उन्हीं रास्…
यूँ ही नहीं - कविता - संतोष ताकर "खाखी"
यूँ ही नहीं मिलती राहों की छाँव, कड़ी धूप में चलना पड़ता है। पूछा, बाज़ से कैसे पाई नई चोच पंखों के साथ, बोला, टकराना पड़ता है चट्टानो…
काबुलीवाला - ग़ज़ल - मनजीत भोला
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तक़ती : 1222 1222 1222 1222 शुरू नॉविल किया पढ़ना लगा वो रहबरी वाला, सफे दो चार बदले थे …
असहाय माँ - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
एक आह उठी नीरस मन में, जब देखी उसकी तन्हाई। वह माता थी जिन बच्चों की, क्यों उसके साथ नहीं भाई? एकाकी बेबस चिर गुमसुम, किस कारण से थी…
नारी शक्ति: आदिशक्ति - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
आदिशक्ति जगत जननी का इस धरा पर जीवित स्वरूप हैं हमारी माँ, बहन, बेटियाँ हमारी नारी शक्तियाँ। जन्म से मृत्यु तक किसी न किसी रुप में हम…
नवरात्रि - कविता - महेन्द्र सिंह राज
नवरात्रि के नौ दिन, माँ दुर्गा की पूजा होती है। जो सच्चे मन से पूजा करता, माँ उनके पापों को धोती हैं।। अलग2 दिन अलग अलग, नामों से जान…
प्रकृति - कविता - कवि सुदामा दुबे
खिल उठे कनक से अमलतास मतवारा महुआ महक उठा! अमराई में बौर महकते मन श्यामा का चहक उठा!! यौवन आया तरूओं पर भी लेती शाखें अँगड़ाई! कोपल पा…
उपकार - कहानी - प्रहलाद मंडल
आज बाज़ार से लौटते हुए तुमने रास्ते में कुछ देखा? अपने मुस्कुराते चेहरे की तीव्र रोशनी से फीके कपड़े को कितना चमका रहा था वो लड़का। &qu…