प्रकृति - कविता - कवि सुदामा दुबे

खिल उठे कनक से अमलतास
मतवारा महुआ महक उठा!
अमराई में बौर महकते
मन श्यामा का चहक उठा!!

यौवन आया तरूओं पर 
भी लेती शाखें अँगड़ाई!
कोपल पात नवल से आए
तन मस्ती में लहक उठा!!

पावक सा चटके पलाश
वो छटा विखेरे मतवारी!
गुलमोहर दमके सिंदूरी 
जैसे लावा दहक उठा!!

साजड़ खैर लगे अलवेले
अल्हड़ जैसा लगे बबूल!
लगे साल सन्यासी जैसा
लगता जैसे ठहक उठा!!

भाव लिए पावन पुनीत से 
नीम खड़ा है सेवक सा!
गगन चूमता पीपल देखो 
जैसे बाबरा बहक उठा!!

कवि सुदामा दुबे - सीहोर (मध्यप्रदेश)

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