ज़िंदगी - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

ज़िंदगी की
राहें बड़ी टेड़ी-मेड़ी,
इन्हें सीधा कर
नहीं तो बन जाएँगे
जीवन की बेड़ी।
अरमानों के ख़्यालों का
पुलिंदा मत बाँधा कर,
जो अरमान साकार न
हो सके उन्हें स्वीकार
न कर।
जीवन का 
कोई भरोसा
नहीं,
मत कर नादानी,
वाणी और आचार विचारों से
लिख दे कोई नई कहानी।
पहले कर्तव्य कर फिर लगा दे 
अधिकारों की झड़ी,
ज़िंदगी की राहें हैं बहुत बड़ी 
टेड़ी-मेड़ी।
परहित कर और
सुकर्मो से अपना जीवन
धन्य बना और लोगों की
वाह वाह ले लो,
तेरे कर्मो को लोग नकारे नहीं
ऐसा कभी ना करना
और किसी के
जीवन से मत खेलो।
कर लो सत्कर्म
नहीं तो ज़िंदगी न रहेगी तेरी,
ज़िंदगी की राहें
बड़ी टेड़ी-मेड़ी।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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