असहाय माँ - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"

एक आह उठी नीरस मन में, 
जब देखी उसकी तन्हाई।
वह माता थी जिन बच्चों की,
क्यों उसके साथ नहीं भाई?
एकाकी बेबस चिर गुमसुम, 
किस कारण से थी वह माई!

सींच किया अपने खूँ से,
छोटे विरवे को बड़ा वृक्ष।
ये बने सहारा अंतिम पल,
बस यही आस थी लगाई।
क्यों माली ने ही कहो हाय,
फिर छाया तक भी ना पाई!

एक आह उठी एक प्रश्न जगा, 
क्यों छोड़ गए उसके जाए।
सन्तति हित सर्व किया स्वाहा,
संपदा और निज तरुणाई।
आँखों से अश्रु लगे बहने, 
चरणों की लखकर बिवाई।।

क्या माँ भी बोझ हुई जग में,
क्या मानवता अब रही नहीं?
उसके करकमल हुए खुदरे,  
श्रम की उकरी थी परछाईं।
मुँह फेर लिया निज जननी से,
क्यों तनिक लाज नहीं आई?

नौ माह रहे जिसके तन में,
उसने तो बोझ नहीं माना।
क्या बचपन भी सब भूल गए,
लोरी भी याद नहीं आई?
वह जरा जीर्ण क्या हुई आज,
तुमने तो माँ ही बिसराई!

नृपेंद्र शर्मा "सागर" - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos