उपकार - कहानी - प्रहलाद मंडल

आज बाज़ार से लौटते हुए तुमने रास्ते में कुछ देखा?
अपने मुस्कुराते चेहरे की तीव्र रोशनी से फीके कपड़े को कितना चमका रहा था वो लड़का।
"श्याम घर में टी वी देखते हुए आज की एक यादगार घटना को बड़े भावुक होकर ज्योति को बता रहा था।"
किसकी बात कर रहे हों? रास्ते में बहुत से लोग थे!
"ज्योति ने श्याम को टोकते हुए पूछ"

अरे वही लड़का जिनका ठेला आ गया था डगमगाते हुए हमारे बाइक के पास।
"श्याम ने ज्योति को पूरी घटना के साथ समझाते हुए कहा"

हाँ!! कितना भोला था, बिल्कुल भी नहीं घबराया जब उसका ठेला आगे आया। और तो और मुस्कुराते हुए झट से मोड़ लिया और घटना को होते-होते बचा भी लिया उसने।
"याद आते ही ज्योति पूरी घटना को अपने अंदाज़ में दोहरा दी" 

हमें रूककर उनसे बातें करनी चाहिए थी, इतना छोटा सा बच्चा इतनी भारी भरकम समान ढो रहा था वो भी ठेले से छाती के बल!
कोई बड़ी वज़ह रही होगी ना!! 

"बात को लगातार रखकर गलानी महसूस करते हुए ज्योति ने श्याम से अपने मन में उठ रहे विचारों और सवालों को श्याम के पास रखी"

हाँ यार पूछना तो चाहिए था मुस्कुराहटों की वज़ह लेकिन काम का झँझट और ऊपर से आॅफिस के प्रेसर के कारण इन सब बातों से आगे कुछ दिखता ही नहीं है फिर भी समय निकाल कर हमें हमारे समाज, रास्ते में बेसहारा लोगों की मदद करनी चाहिए अब तो हम दोनों के पास नौकरी है, सिर्फ पैसों को घर, गाड़ी, बंगला तक सीमित नहीं रखना चाहिए।
हम दोनों को किसी मासूम की बाहर की मुस्कुराहट को देखकर अंदर की भी मुस्कुराहटों का वज़ह बनने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि हर कोई यहाँ यहीं सब एक दिन छोड़ कर जाता है। धन संपत्ति को लेकर मरने के बाद अपने भी ज़िक्र नहीं करेंगे।
"श्याम, ज्योति के विचारों में हाँ में हाँ मिलाकर अपने भी मन के सारे प्रयास रत विचारों को रख दिया"

बात करते करते काफी रात हों गई थी, दोनों ने खाना पीना खाया और सो गए।

अगली सुबह :-
श्याम, ज्योति को उसके ऑफिस में छोड़कर अपने ऑफिस की तरफ़ जा रहा था तभी उसका नज़र उसी लड़के पर पड़ी लेकिन यहाँ उनके पास ठेला नही था। 

उस लड़के ने अपने साथ आए दो छोटे छोटे बच्चे को जिसमें एक लड़की थी और एक लड़का था, लड़के ने उन दोनों बच्चों को स्कूल बस पर चढाया और एक ज़िम्मेदार पिता के जैसे मुस्कुराते हुए इशारें इशारें में ही कह डाला कि अच्छे से पढ़ाई करना और तुम दोनों अपना ख़्याल रखना। वो दोनों भी बस की खिड़की से झाँकते हुए मुस्कुराते हुए उस लड़के से भी उसको अपना ख़्याल रखने के लिए कहा। हालांकि वो लड़का पिता नहीं बल्कि भाई है।

उनके इस ज़िम्मेदारी को देखकर श्याम को ये बिल्कुल सपने जैसा लग रहा था।
श्याम अपनी बाइक उस लड़के से दो क़दम पीछे ही जाकर खड़ा कर रखा था और बाइक की सीट पर ही बैठकर उनको एकटक देखा जा रहा था क्योंकि अभी तक श्याम सिर्फ़ कहानियों या फिल्मों में ही इस तरह की घटना देखा या पढ़ा था लेकिन यहाँ वह साक्षात देख रहा था।

बस चली गई स्कूल की तरफ़। श्याम भी मन ही मन ख़ुद से पूछ रहा था कि इनसे इनके बारे में पूछे या नहीं। तभी ठीक उनके करीब से वह लड़का लौटते हुए मन ही मन बड़बड़ाया जा रहा था चलों हम ना पढ़े तो क्या हुआ? 
लोग कहते हैं कि एक घर में अगर कोई अच्छे से पढ़ ले तो सात पुष्टी सुखद हो जाता है बस पढ़ ले छोटको, छोटकी हम ऐसे ही ठीक है कमा तों लेते हैं। ऐसे मुस्कुराहट के साथ पागल की भांति बोले जा रहा था जैसे दुनिया में इससे सुखद ज़िंदगी किसी के पास नहीं है। 

वो लडका तो बोले जा ही रहा था, श्याम भी अपने बाइक को घुमाते हुए उसके पीछे पीछे धीमी गति से उसकी बड़बड़ाहट सुनते हुए जा रहा था। 
श्याम को उसकी एक-एक बातें सीने में धँसे जा रहा था। श्याम सोच रहा था कि वह लड़का सीने में कई ग़म छुपाकर माँ-पिताजी के गुज़रने के बाद इतनी ज़िम्मेदारियों के साथ भी मुस्कुरा रहा था और एक हम इतनी तनख़्वाह पाने के बाद भी ख़ुद को हर्षित नहीं कर पाते हैं।
अचानक से वो लड़का जाते हुआ खड़ा हो गया और आकाश की तरफ देखते हुए बोला माँ पिताजी इतनी बातें मैं आपसे ही कह रहा था, मुझे दूसरा कौन सुनना चाहेगा? क्योंकि लोग पूरे शीशे पर ही चेहरा देखना चाहते हैं टूटे हुए शीशे पर चेहरा देखना दिन भर का जतरा खराब मान लेते हैं। आपलोग साथ तो नहीं हो लेकिन आस पास रहकर मेरी बातों को सुनते रहना बाकी मैं उन दोनों की पढ़ाई किसी भी परिस्थिति में नहीं रोकूँगा और ना ही मैं उन दोनों पर कोई दुःख आने दूँगा।
इतना कहकर रोते हुए पीछे की और मुड़ा तो श्याम को एकाएक देखकर आँसू तुरंत पोछ लिया।

श्याम को सब पता चल चूका था, अब नज़रे भी आमने सामने हो ही गई थी, इसलिए श्याम उस लड़के से नाम पूछा।
उसने फिर वही मुस्कुराहट के साथ मुस्कुराते हुए कहा, ख़ुद के हम साथी है, नाम का क्या करना साहब? टूटा हुआ शीशा हूँ, मेरे नाम सुनने से शायद आपका दिन बुरा हो जाए। हाँ अगर आप काम दे दोगे तो नाम बता दूँगा, नहीं तो आपको जो बुलाने का मन करें बुला लेना।

अब श्याम के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहें।
उन्हें बालश्रम कराना अच्छा नहीं लगा इसलिए उन्हें पढ़ाई करने के लिए पूछा।
लेकिन उसका जवाब आया, पढाई करना तो चाहता हूँ लेकिन तीन पेट का व्यवस्था करना होता है।

हाँ तो हम करेंगे।
"श्याम उत्सुकता से बोला"
आप करेंगे लेकिन पढ़ाई भी तीन को करनी है।
श्याम ने सर को हिलाते हुए हाँ कहा और सभी की ज़िम्मेदारी उठाने का निर्णय ज्योति के बिना ही ले लिया क्योंकि ज्योति श्याम से भी अधिक दयालु थी इसलिए उसका ये निर्णय वो मान ही लेगी।

प्रहलाद मंडल - कसवा गोड्डा, गोड्डा (झारखंड)

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