बस सँवरती रहे - कविता - धीरेन्द्र पांचाल

वो गरजती रहे,
वो बरसती रहे।
मेरी जान है वो याद मुझे करती रहे।
ऐ ख़ुदा तुझसे इतनी सिफ़ारिश मेरी,
वो जहाँ भी रहे बस सँवरती रहे।।

हो ना हैरान वो,
उसको एहसास दे।
मैं भी खुश हूँ यहाँ, बस तेरे वास्ते।
जब भी मौक़ा मिले, अपनेपन से उसे,
मेरी ख़ातिर दुआएँ भी करती रहे।
वो जहाँ भी रहे बस सँवरती रहे।।

रौशनी दे गई,
मोम सी गल गई।
मुझको दरिया बना बर्फ में ढल गई।
उसको जीना पड़े ना बंदिशों में कभी,
क़ैद हो ना कभी वो महकती रहे।
वो जहाँ भी रहे बस सँवरती रहे।।

धीरेन्द्र पांचाल - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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