तुम अगर राधिका बन सको हे प्रिये,
मैं तुम्हारा ही घनश्याम हो जाऊँगा।
हम है उषा और संध्या सरीखे मगर,
रंग हूँ रंग में मैं भी खो जाऊँगा।।
इंद्रधनुषों कि आभा सरीखी हो तुम,
चंद्रिका हो या भागीरथी धार हो।
घाटियों सा बिछा तेरे आगोश में,
ग्राम गीतों सा मैं उनका तुम सार हो।।
है तुम्हारा सपन रातरानी प्रिये,
तुम चमेली, कुमुद, केतकी हार हो।
जिनमे जगकर के बाकी रह जग में क्या?
तुम उन्ही नैनो का कोई त्योहार हो।।
रागिनी बन सकोगी अगर तुम प्रिये,
मैं तुम्हारा गहन राग हो जाऊँगा,
हम है उषा और...
तुमको देखा हिला शांत मन सिंधु जल,
कुछ अनोखी सी हलचल भी होने लगी।
तुम में खोए रहे कल्प भर ये अधर,
रूह आलिंगनों में ही सोने लगी।।
खो रही पूर्णिमा है अमावस में जब,
हम विचरते रहे सातो आकाश में।
दूर दुनिया को रख तन की सीमाएँ तज,
चेतनाएँ मिली दूर अवकाश में।।
चांदनी बन सकोगी अगर तुम प्रिये,
मैं तुम्हारा सुचिर चाँद हो जाऊँगा,
हम है ऊषा और...
मोहित बाजपेयी - सीतापुर (उत्तर प्रदेश)