ज़िन्दगी ने - कविता - संदीप कुमार

क्या बताएँ हमें क्या दिखाया है ज़िन्दगी ने,
क़सम से बहुत ज्यादा तड़पाया है ज़िन्दगी ने।।

जिन रास्तों से दूर रहना चाहता था मैं,
उन्हीं रास्तों पर हर बार चलाया है ज़िन्दगी ने।
जो ना करने को ज़माने से कहा करता था,
वही मुझसे हर बार कराया है ज़िन्दगी ने।।

मुझे दुनिया को हँसाना अच्छा लगता है मगर,
मेरी ही हँसी को बार बार चुराया है ज़िन्दगी ने।
दूसरों के आँसू हमेशा पोछने चाहे मैंने,
लेकिन मुझको ही बार बार रुलाया है ज़िन्दगी ने।।

राहों में सबके लिए मैंने फूल बिछाने चाहे,
लेकिन काँटों पर बार बार गिराया है ज़िन्दगी ने।
सबके लिए मैं रौशनी करता रहा हूँ,
लेकिन मुझे ही अँधेरा दिखाया है ज़िन्दगी ने।।

मैंने बार-बार चोटें खाई और सह गया,
लेकिन उसके बाद भी दिल दुखाया है ज़िन्दगी ने।
बार बार खुशियों की चाहत करता रहा मैं,
और हर बार ग़मों से मिलाया है ज़िन्दगी ने।।

मैंने इस कदर कभी किसी को सताया नहीं,
जिस कदर मुझे अब तक सताया है ज़िन्दगी ने।
लेकिन इसके बाद भी ज़िन्दगी से कोई शिकवा कोई गिला नहीं,
क्योंकि हर बार एक नया रास्ता दिखाया है ज़िन्दगी ने।।

संदीप कुमार - नैनीताल (उत्तराखंड)

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