अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 122 122 122
सुनो तो मुझे भी ज़रा तुम,
बनो तो मिरी शोअरा तुम।
ये सोना ये चाँदी ये हीरा,
है खोटा मगर हो खरा तुम।
तिरा ज़िक्र हर बज़्म में है,
सभी ज़िक्र से मावरा तुम।
मिरी कुछ ग़ज़ल तुम कहो अब,
ख़बर है हो नुक्ता-सरा तुम।
मिलो भी कभी घर पे मेरे,
करो चाय पर मशवरा तुम।
थी ये दोस्ती कल तलक ही,
हो अब 'अर्श' की दिलबरा तुम।
अमित राज श्रीवास्तव "अर्श" - चन्दौली, सीतामढ़ी (बिहार)