दीवारों के भी कान होते है - ग़ज़ल - एल. सी. जैदिया "जैदि"

अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलात
तक़ती : 122 122 1221

दीवारों के भी कान होते है,
ऐसे भी देखो इंसान होते है।

शतरंज के ये माहिर मोहरे,
खिलाड़ी की ये जान होते है।

दिन को चैन न रात को चैन
ज़िंदा रह के ये बे-जान होते है।

ज़मीर बेच कर करना काम,
इनके ऐसे ही, इमान होते है।

कैसा नफ़ा है कैसा नुकसान,
ये ज़ालिम बड़े शैतान होते है।

सियासत की चालो मे "जैदि"
ऐसे हर घोड़े बड़े महान होते है।

एल. सी. जैदिया "जैदि" - बीकानेर (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos