मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
काबुलीवाला - ग़ज़ल - मनजीत भोला
शुक्रवार, अप्रैल 16, 2021
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती : 1222 1222 1222 1222
शुरू नॉविल किया पढ़ना लगा वो रहबरी वाला,
सफे दो चार बदले थे कि निकला रहज़नी वाला।
गुज़ारिश है यही ऐनक हमें धुँधली कोई दे दो,
कि आँखें छीन सकता है ज़माना रोशनी वाला।
शज़र को हम उगाएँ और चिंता छोड़ दें फल की,
कभी तू पूछना मीरा, कहे क्यों बाँसुरी वाला।
यहाँ तालीम पाने का जिसे हक़ ही न हासिल था,
कहो कैसे लिखेगा वो, फ़साना राम जी वाला।
महज़ दाढ़ी बढ़ाने से नहीं होता कोई टैगोर,
दिलों में लाज़मी है, आदमी वो काबुलीवाला।
अगर बातें हुई उनसे न जाने क्या हश्र होगा,
हमें सोने नहीं देता वो लम्हा ख़ामुशी वाला।
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